नई दिल्ली/ मुंबई। यूनिट आधारित बीमा प्रॉडक्ट्स (यूलिप) की निगरानी के मुद्दे पर सेबी और इरडा जैसी दो रेग्युलेटर्स में छिड़ी जंग अब अदालत में जा सकती है। दोनों पक्ष और बीमा उद्योग अपने-अपने रुख पर अड़े हुए हैं। ऐसी हालत देखते हुए एक विकल्प सरकार के दखल देने से भी जुड़ा है। सरकार के पास रेग्युलेटर्स को आदेश या निर्देश देने के अधिकार हैं, लेकिन अब तक ऐसा कोई मौका नहीं आया है जब सरकार ने इनमें से किसी भी रेग्युलेटर के मामले में अपने अधिकारों का इस्तेमाल किया हो।फाइनैंश सेक्रेटरी अशोक चावला ने रविवार को ईटी से कहा, 'हम देखेंगे कि सरकार कोई भूमिका बनती है या कानूनी प्रक्रिया को बढ़ने देना चाहिए।' एक सीनियर अधिकारी ने बताया कि वित्त मंत्रालय सोमवार को हालिया घटनाक्रम पर विचार-विमर्श कर सकता है। इरडा के प्रमुख जे हरि नारायण ने ईटी से कहा, 'हालिया घटनाक्रम काफी दुर्भाग्यपूर्ण रहे हैं। इस बारे में हमारी स्पष्ट राय है कि इस समय के कानून के अनुसार यूलिप के रेग्युलेशन का अधिकार इरडा के पास है। निवेशक इन 14 कंपनियों और अन्य कंपनियों की ओर से जारी नए यूलिप खरीद सकते हैं या पुराने रिन्यू करा सकते हैं।'भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के एक आला अफसर ने पहचान जाहिर न करने की शर्त पर बताया कि इरडा को राजी करने की सभी कोशिशें नाकाम होने पर हमें यह कदम उठाने पर मजबूर होना पड़ा। उन्होंने कहा कि एक ही प्रॉडक्ट्स पर दोनों ही बाजारों में काम कर रही कंपनियों पर दो रेग्युलेटर्स की निगरानी में सेबी को टकराव की कोई वजह नजर नहीं आ रही है।एक सीनियर अधिकारी ने बताया कि अपनी ओर से इरडा (भारतीय बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण) ने सरकार को सूचित किया है कि वह बीमा कंपनियों को सेबी की पाबंदी न मानने से जुड़े निर्देश देने पर इसए मजबूर हुआ क्योंकि उसका मानना है कि ऐसे कदम से बाजारों की वित्तीय स्थिरता प्रभावित होगी, पॉलिसीधारकों के हितों को नुकसान पहुंचेगा, नकदी के प्रवाह पर असर पड़ेगा और बीमा कंपनियों के मुनाफे को झटका लगेगा। यह बवाल तब खड़ा हुआ जब सेबी ने मंजूरी न लेने की वजह से 14 बीमा कंपनियों के यूलिप बेचने पर पाबंदी लगा दी, जबकि इसके ठीक एक दिन बाद इरडा ने बीमा कंपनियों से कहा कि वे यूलिप बेचना जारी रखें। रेग्युलेटर्स के बीच पहले भी लड़ाइयां छिड़ चुकी हैं, लेकिन पहले कभी भी उनकी तूतू-मैंमैं इस तरह खुलकर सामने नहीं आई थी। दरअसल, दांव पर काफी कुछ लगा हुआ है क्योंकि लाखों यूनिटधारकों के हितों की सुरक्षा करने की जरूरत है, जबकि यूलिप से इक्विटी में भारी-भरकम निवेश होने के कारण शेयर बाजारों पर भी इसका असर होना तय है। यूलिप के रेग्युलेशन से जुड़ा मुद्दा बीते करीब दो साल से उच्चस्तरीय समन्वय समिति के एजेंडे में है। वित्त मंत्रालय ने समाधान निकालने के लिए दोनों रेग्युलेटर्स की एक बैठक भी बुलाई थी, लेकिन कोई नतीजा सामने नहीं आया। एक सुझाव यह भी है कि 50 फीसदी से ज्यादा का इक्विटी अंश रखने वाले यूलिप का पंजीकरण सेबी के पास कराया जाए, जबकि 50 फीसदी से कम इक्विटी कम्पोनेंट पर यूलिप प्लान इरडा के पास रजिस्ट्रेशन कराएं। हैदराबाद में सेबी और इरडा के शीर्ष अधिकारियों की दो बैठकें हुईं, लेकिन नतीजा फिर सिफर रहा। सेबी के चेयरमैन सी बी भावे एक समारोह में हिस्सा लेने के लिए सोमवार को दिल्ली आ रहे हैं, जिसमें वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी भी मौजूद होंगे। इरडा के चेयरमैन जे हरि नारायण रविवार को राजधानी में ही थे। उन्होंने शीर्ष सरकारी अधिकारियों से मुलाकात कर अपना रुख सामने रखा।

दीपक राई जी
अभी अभी पता चला कि आपने ब्लागिंग स्टार्ट की है शुभकामनाएं ... संयोग से आपने अपने ब्लाग का नाम "कडवा सच" रखा है बिलकुल इसी नाम "कडुवा सच" से मैं विगत दो-तीन साल से ब्लागिंग कर रहा हूं।
अत: आशा करता हूं कि आप ब्लाग के नाम मे परिवर्तन कर लें ताकि आपके मित्रों व पाठकों को तथा मेरे मित्रों व पाठकों को आपस में कोई "कन्फ़्यूजन" न हो।
आप मेरे ब्लाग पर आमंत्रित हैं,शेष कुशल,शुभकामनाएं ।
श्याम कोरी 'उदय'
www.kaduvasach.blogspot.com